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जुष्टो॒ दमू॑ना॒ अति॑थिर्दुरो॒ण इ॒मं नो॑ य॒ज्ञमुप॑ याहि वि॒द्वान्। विश्वा॑ अग्ने अभि॒युजो॑ वि॒हत्या॑ शत्रूय॒तामा भ॑रा॒ भोज॑नानि ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

juṣṭo damūnā atithir duroṇa imaṁ no yajñam upa yāhi vidvān | viśvā agne abhiyujo vihatyā śatrūyatām ā bharā bhojanāni ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

जुष्टः॑। दमू॑नाः। अति॑थिः। दु॒रो॒णे। इ॒मम्। नः॒। य॒ज्ञम्। उप॑। या॒हि॒। वि॒द्वान्। विश्वाः॑। अ॒ग्ने॒। अ॒भि॒ऽयुजः॑। वि॒ऽहत्य॑। श॒त्रु॒ऽय॒ताम्। आ। भ॒र॒। भोज॑नानि ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:4» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) बिजुली के सदृश श्रेष्ठ गुणों से सम्पन्न राजन् ! (जुष्टः) सेवित वा प्रसन्न किये गये (दमूनाः) शम, दम आदि से युक्त (अतिथिः) अकस्मात् आये (दुरोणे) गृह में प्राप्त हुए से (विद्वान्) विद्वान् आप (नः) हम लोगों के (इमम्) इस प्रत्यक्ष (यज्ञम्) अन्न आदि उत्तम पदार्थों के दान को (उप, याहि) प्राप्त हूजिये और (शत्रूयताम्) शत्रुओं के सदृश आचरण करते हुओं की (विश्वाः) सम्पूर्ण (अभियुजः) सम्मुख प्राप्त हुई शत्रुसेनाओं का (विहत्या) अनेक प्रकार के वधों से नाश करके (भोजनानि) प्रजापालन वा खाने योग्य अन्नों को (आ, भरा) धारण कीजिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो राजा दुष्टों का नाश करके न्याय से प्रजाओं का पालन करता है, वह बहुत ही प्रजा का प्रिय होता है ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! जुष्टो दमूना अतिथिर्दुरोणे प्राप्त इव विद्वांस्त्वं न इमं यज्ञमुप याहि शत्रूयतां विश्वा अभियुजो विहत्या भोजनान्या भरा ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (जुष्टः) सेवितः प्रीतो वा (दमूनाः) शमदमादियुक्तः (अतिथिः) अकस्मादागतः (दुरोणे) गृहे (इमम्) प्रत्यक्षम् (नः) अस्माकम् (यज्ञम्) अन्नाद्युत्तमपदार्थदानम् (उप) (याहि) (विद्वान्) (विश्वाः) समग्राः (अग्ने) विद्युदिव शुभगुणाढ्य राजन् (अभियुजः) या आभिमुख्यं युञ्जते ताः शत्रुसेनाः (विहत्या) विविधवधैर्हत्वा। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (शत्रूयताम्) शत्रूणामिवाचरताम् (आ) (भरा) धर। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (भोजनानि) प्रजापालनानि भोक्तव्यान्यन्नानि वा ॥५॥
भावार्थभाषाः - यो राजा दुष्टान् हत्वा न्यायेन प्रजाः पालयति सोऽत्यन्तं प्रजाप्रियो भवति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा दुष्टांचा नाश करून प्रजेचे पालन करतो तो प्रजेला अत्यंत प्रिय असतो. ॥ ५ ॥